कालामोतिया: धीरे-धीरे चली जाती है रोशनी
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By: Dr. Harsh Kumar
ग्लूकोमा दृष्टि संबंधी एक शांत हत्यारे कि तरह होता है और जो अंधेपन का सबसे बड़ा मुख्य कारण है। इसके कभी भी किसी प्रकार के लक्षण नजर नहीं आते विशेषकर प्रथम अवस्था में क्योंकि इस में अपरिवर्तनीय रूप से दृष्टि के नष्ट होने के प्रमुख कारण या चिन्ह प्रदर्शित नहीं होते। आंख की पौष्टिकता और आकार उत्पादन और तरल पदार्थ की निकासी पर निर्भर करती है इसे एक्यूअस हयूमर के नाम से जाना जाता है। ग्लूकोमा तरल पदार्थ के उत्पादन में या तो स्थायी वृद्धि होती है या तरल पदार्थ की निकासी में कमी होती है। इस असंतुलन के कारण यहां आंख पर पड़ते दबाव में वृद्धि होती है कि रोशनी ग्रहण करने वाली नस के लिए खून की स्पलाई कम हो जाती है जिस से यह नस नष्ट हो जाती है और व्यक्ति को दिखायी देने में कमी होने से दृष्टि दोष व अंधेपन की प्रमुख समस्या उत्पन्न हो जाती है। यह एक ऐसी बीमारी है जिसमें कि जीवनभर देखभाल और स्थायी उपचार करवाने की जरूरत होती है। जैसे कि यहां आंख के दबाव को नियंत्रण में रखने के लिए कोई स्थायी उपचार या देखभाल नहीं है चाहे वह उपचार लेजर द्वारा किया गया हो या दवाइयों को सेवन कर के व रोजाना डाक्टरी जांच द्वारा करवाया गया हो।
ग्लूकोमा को कालामोतिया भी कहते हैं। इसे सुनकर ऐसा लगता है जैसे कि हमारे शरीर के मोती यानी आंखों से संबंधित है। जी हां, काला मोतिया आंखों का एक ऐसा रोग है जो कि धीरे-धीरे मरीज की आंखों में प्रवेश कर उसे अंधेपन की ओर धकेेलता चला जाता है। मरीज को इसका आभास मात्र भी नहीं होता कि उसकी आंखें एक बहुत बड़े हादसे का शिकार बनने जा रही हैं। शायद इसीलिए इस बीमारी को साइलेंट किलर अर्थात् खामोश हत्यारे का भी नाम दिया गया है।
इस समस्या की सबसे बड़ी व्यथा यह है कि यह खामोशी के साथ काम करता है। प्रारंभिक अवस्था में न तो कोई लक्षण प्रकट होते हैं और न ही कोई संकेत। यह पल-पल की देरी मरीज को उसकी दूष्टि से दूर करती चली जाती है और जिस दिन मरीज की आंखें खुलती हैं, उस दिन वह दुनिया को देखने लायक नहीं होता है।
काला मोतिया के बारे में अधिक से अधिक जागरुकता पैदा करने और लोगों में इसके प्रति जानकारी बढ़ाने का प्रयास किया जाना चाहिए। हैरतअंगेज तो यह है कि मोतियाबिंद के बाद अंधेपन का दूसरा कारण काला मोतिया ही है. हालांकि मोतियाबिंद का उपचार उपलब्ध है लेकिन काला मोतिया के दौरान एक बार आंखों की रोशनी चले जाने के बाद उसे पुनः प्राप्त कर पाना अभी तक संभव नहीं हो पाया है। इसमें सबसे बड़ी चुनौती तो यह होती है कि इसके लक्षण तभी उभरते हैं जब मरीज अपनी अधिकतर दृष्टि खो चुका होता है।
ग्लूकोमा की शुरुआती पहचान के लिए तीन तरह की जांच प्रक्रिया होती है.
- ऽ टोनोमीटर द्वारा नेत्र दबाव की माप
- ऽ ऑष्टिक डिस्क, नेत्र बिम्ब परीक्षण
- ऽ दृष्टि के बाहरी क्षेत्र की जांच के लिए विजुअल फील्ड्स
याद रखिए ग्लूकोमा को रोकने का एकमात्र रास्ता शुरुआती स्तर पर इसकी पहचान है। इसलिए सेंटर फॉर साइट के चिकित्सकों का कहना है कि अपने वार्षिक चेक-अप की सूची में निरोधत्मक नेत्र परीक्षण को भी शामिल कीजिए। नेत्र दबाव में तेजी से वृद्धि के परिणामस्परुप होने वाले गंभीर ग्लूकोमा की स्थिति में जो कुछ लक्षण दिखाई दे सकते हैं, वे इस प्रकार से हैंः
ग्लूकोमा के लक्षण
- ऽ थियेटर जैसे अंधकारमय जगह पर देखने में असहजता।
- ऽ आंखों के नंबर में जल्दी-जल्दी बदलाव।
- ऽ आंखों की बाहरी दृष्टि का कम होना।
- ऽ सिरदर्द, आंखों में कुछ भाग से दिखाई न देना।
- ऽ प्रकाश के आसपास इंद्रधनुषी छवि दिखना।
- ऽ आंखों में तेज दर्द, चेहरे में भी दर्द।
- ऽ वमन व जी मचलना।
- ऽ दृष्टि पटल पर अंधेरे क्षेत्रों का एहसास।
- ऽ आंखों और चेहरे का तेज दर्द, आंखों की लाली।
- ऽ प्रकाश के चारो तरफ चमक के साथ धुंधुली दृष्टि।
- ऽ मितली और उल्टी।
- ऽ ग्लूकोमा का समय पर उपचार दृष्टि को और अधिक बिगड़ने या अंधेपन से बचा जा सकता है।
ग्लूकोमा के कारण-
आंख का वह तरल पदार्थ जिसे एक्यूअस हयूमर के नाम से जाना जाता है, आखों की पौष्टिकता और आकार उत्पादन के लिए इसका प्रवाह आवश्यक होता है। आंखों में इस तरल पदार्थ का बनना व सूखना आंखों की स्वस्थता का प्रमाण है। लेकिन अगर इस तरल पदार्थ के उत्पादन में वृद्धि होती है या तरल पदार्थ की निकासी में कमी होती है, तो इस असंतुलन के कारण आंख की नसों पर दबाव बढने लगता है जिससे कि रोशनी ग्रहण करने वाली नस के लिए खून की सप्लाई कम हो जाती है और ऐसे में यह नस नष्ट हो सकती है।
इससे संबंधित कुछ तथ्य-
- ऽ विश्व में कालामोतिया अंधेपन का दूसरा बड़ा कारण है।
- ऽ कालामोतिया किसी भी उम्र, बच्चों, बड़ों, बुजुर्गों पर धावा बोल सकता है।
- ऽ कालामोतिया से खोने वाली दृष्टि को पुनः प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
- ऽ उपचार, आई ड्राप्स, दवाइयां, लेजर उपचार।
- ऽ एर्गोन लेजर ट्रेबेक्यूलोप्लास्टी।
- ऽ सेलेक्टिव लेजर ट्रेबेक्यूलोप्लास्टी।
- ऽ ड्रेनेज इंप्लांट सर्जरी आदि
यह एक ऐसी बीमारी है जिसके एक बार उभरने के बाद इसे पूरी तरह से ठीक कर पाना तो संभव नहीं है लेकिन अगर ऐहतियात का पालन किया जाए तो इससे होने वाले अंधेपन की रोकथाम अवश्य ही संभव है। इस समस्या से बचने के लिए जीवनभर देखभाल की जरूरत होती है। सभी लोग जो कि 40 की उम्र पार कर चुके हैं, या जो लोग दिए गए लक्षणों में से किसी भी लक्षण से परेशान हों तो अपनी आंखों की नियमित जांच अवश्य कराएं। आंखों का खास ख्याल रखना आप के स्वयं की जिम्मेदारी है। याद रखिए स्वस्थ आंखें स्वस्थ मन का आइना होती हैं।
ग्लूकोमा उपचार है आवष्यक
उपचार के अंतर्गत लेसरों द्वारा चिकित्सा प्रबंधन, शल्य चिकित्सा प्रबंधन या प्रबंधन किया जाते हैं। मेडिकल प्रबंधन आई ड्रॉप के साथ किया जाता है। सर्जिकल प्रबंधन के अंतर्गत वे प्रक्रिया की जाती है जहां एक ऐसा ऑपन एरिया बनाया जाता है जिसमें आंख के तरल पदार्थ के लिए नया जल निकासी मार्ग बनाया जाता है। लेजरों द्वारा प्रबंधन के अंतर्गत जो प्रक्रिया की जाती है वे प्रक्रिया है ट्रेबेकुलॉप्लास्टि, इसमें लेजर का उपयोग ट्रेबेकुलर के जल निकासी क्षेत्र को खोलने के लिए किया जाता है, इरीडोटोमी में इरीज में एक छोटा सा छेद बनाते है, जिससे बहाव आसानी से हो सके।
Source: www.vijaynews.in