जब आंख का प्राकृतिक लेंस अपारदर्शी हो जाये तो उसे कैटरेक्ट या मोतियाबिंद कहते हैं. सामान्यतः आँखों के लेंस के माध्यम से ही प्रकाश रेटिना पर प्रतिबिम्ब बनाता है. यह प्रतिबिम्ब तंत्रिका तंत्र के द्वारा मस्तिष्क पर प्रकाश पुंज के वास्तविक प्रतिबिम्ब का आभास करता है . लेकिन की अवस्था में प्राकृतिक लेंस अपरदेशी होजाता है जिसके कारण प्रकाश ररेटिना तक सही ढंग से नहीं पहुँच पाता है. अतः प्रतिबिंब धुंधला दीखता है. 60 के उम्र की आधी से ज़्यादा जनसँख्या मोतियाबिंद की मरीज़ है, जबकि ७०वर्ष की उम्र के ८०% लोगों की कम से कम एक आंख में मोतियाबिंद पाया जाता है . भारत में करीब 80 लाख लोगो की नज़र मोतियाबिंद के कारण धुंधली होजाती है. यह आंकड़े दिमाग को हिलाने वाले हैं.
मोतियाबिंद होने का मुख्य कारणक्या है?
Motiyabind अक्सर बढ़ती उम्र के साथ आंख के लेंस के ऊपर का टिश्यू चोट लगने के कारण बदला जाये तो भी मोतियाबिंद जल्दी हो सकता है। मोतियाबिंद कई लोगो को उनके परिवार हिस्ट्री की वजह से भी होता है जैसे की परिवार में माता पिता को डायबिटीज है तो भी आपके मोतियाबिंद होने के संभावना बढ़ जाती है. मोतियाबिंद होने पर आम तौर पर नज़र धुंधली पड़ जाती है, हलकी रौशनी में देखने में परेशानी होती है।
मोतियाबिंद के लक्षण :
– धुंधली एवं अस्पष्ठ नज़र – दोहरी नज़र – शुरुआती अवस्था में जल्दी जल्दी चश्मा बदलने की ज़रुरत – मोतियाबिंद बढ़ने पर ज़्यादा पावर वाला चश्मा भी नज़र में सुधर नहीं कर पता है – दोनों आँखों के पावर में असंतुलन के चलते सर दर्द
मोतियाबिंद कितने प्रकार के होते हैं?
मोतियाबिंद दो प्रकार के होते हैं :
सफेद मोतिया
एक जिसे हम इंग्लिश भाषा में सफेद मोतिया (वाइट कैटरेक्ट) के नाम से जानते हैं ये उम्र के बढ़ने के साथ ही आपके आँखों के लेंस को धुंदला कर देता है और आँखों के कुदरती लेंस के ऊपर सफ़ेद झिल्ली आजाती है जो की आपकी दृष्टि को दिन प्रति दिन प्रभावित करती है।
काला मोतिया
दूसरा जिसे हम हिंदी में और इंग्लिश में Glaucoma के नाम से जानते हैं। कला मोतिया एक खतरनाक अवस्था है जिसमे आँखों की दृष्टि समय के साथ सिमटती जाती है अगर समय पर इलाज न कराया जाये तो ये अंधेपन के क़रीब ले जासकता है। ग्लूकोमा की ज़्यादा जानकारी हेतू यहाँ क्लिक करें (glaucoma blog link)
उपलभ्ध इलाज क्या है मोतियाबिंद के लिए?
सेंटर फॉर साइट में मोतियाबिंद के इलाज हेतु अनेको तकनीक मौजूद हैं उनमे से कुछ यह हैं:
माइक्रो इंसीजन मोतियाबिंद सर्जरी
इस प्रक्रिया में 1.8 mm चीरे द्वारा कुदरती धुंधले हो चुके लेंस को निकल लिया जाता है और नया लेंस इम्प्लांट किया जाता है |
फेम्टो रोबोटिक कैटरेक्ट सर्जरी
इस प्रक्रिया में बहुत ही काम समय लगता है और मरीज़ अगले दिन से ही अपने रोज़ाना के काम करना शुरू करसकता है इस प्रक्रिया में लेज़र को केवल ३० से ४० सेकंड का समय लगता है ये बिलकुल सुरक्षित है और बेहद सटीक है बिना किसी डिस्कम्फर्ट के आप कुछ ही मिंटो में पा सकते है साफ और बेहतर दृष्टि।
Femto लेज़र मोतियाबिंद के महत्वपूर्ण तथ्य :
– ब्लेड रहित लेज़र मोतियाबिंद सर्जरी – लेज़र को काम पूरा काम करने में बहुत काम समय लगता है. – ज़्यादा सुरक्षा , शुद्धता एवं सटीकता – लेज़र के प्रयोग से कैप्सूलर छिद्र का निर्माण , मोतियाबिंद के टुकड़े करना एवं कॉर्नियल चीरा बनाना – जल्द रिकवरी के साथ बेहतर दृष्टि परिणाम देता है. रोबोटिक फेम्टो के बारे में एयर जाने: दुनिया भर में उपलब्ध मोतियाबिंद के इलाज के क्षेत्र में फेम्टोसेकन्ड लेज़र एक बिलकुल नई एवं सर्वोत्तम तकनीक है. ब्लेड एवं टंका रहित होने की वजह से यह देती है एकदम सटीक परिणाम. इस प्रक्रिया से मोतियाबिंद के जटिल से जटिल कार्य भी लेज़र चलित हो गये हैं.
फेम्टो लेज़र के फायदे:
– 100% ब्लेड रहित तकनीक सटीक कटाव देती है एवं हस्त चलित ब्लेड के चीरे से बेहतर होती है. पारम्परिक सर्जरी में हाथ से चलाये जाने वाले उपकरणों से किये गए चीरे का घाव सिमित होता है. इसके विपरीत फेम्टोसेकन्ड लेज़र में कॉर्नियल चीरा लगाने के लिए लेज़र का प्रयोग किया जाता है. सटीकता से बना चीरा तेज़ी से भरता है और बाद में होने वाले संक्रमण का खतरा भी काम करता है. – लेज़र से बने कैप्सूलरहेक्सिस नज़र को दुरुस्त करते हैं एवं मरीज़ को बेहतर सुरक्षा मिलती है. फेम्टोसेकन्ड लेज़र का प्रयोग करते हुए मोतियाबिंद सर्जरी में पहला कदम लेज़र के प्रयोग से मोतियाबिंद के चारों तरफ कैप्सूलर छिद्र करना होता है. इस तकनीक के प्रयोग से कैप्सूलर छिद्र दोगुना मज़बूत होता है और हाथ से बने छिद्र की बनावट व आकार की तुलना में ५ गुणा सटीक होता है. तब लेज़र मोतियाबिंद को छोटे छोटे टुकड़ों में काट देता है. फिर रोबोटिक सटीकता से कॉर्नियल चीरे बनाये जाते हैं. यह सभी कार्य ब्लेड या सुईं का प्रयोग किये बिना किये जाते हैं. – मरीज़ को बहता सुरक्षा फेम्टोसेकन्ड लेज़र ने हस्तचालित बहुपरक्रियाओं एवं बहु उपकरणी फेको एमुल्सिफिकेशन प्रक्रिया को एक लेज़र युक्त एवं कंप्यूटर चलित प्रक्रिया में बदल दिया है . फेम्टोसेकन्ड लेज़र का प्रयोग की जाने वाली मोतियाबिंद सर्जरी में हर पहलु कंप्यूटर द्वारा किया जाता है एवं जांचा जाता है . इससे ऑपरेशन सुरक्षित होता है और बेहतर सर्जिकल परिणाम मिलते हैं. – दृष्टि वैषभ्यता को ठीक करता है दृष्टि वैषभ्यता से पीड़ित लोगो की आँखों की सामने वाली सतह ढंग से विकृत नहीं होती है. अनियमित वक्र से नज़र धुंधली होती है. फेम्टोसेकन्ड लेज़र दृष्टी वैषभ्यता को भी ठीक कर देता है. अगर आपको मोतियाबिंद की सर्जरी करने की ज़रुरत है तो विशिष्ट मोतियाबिंद चिकित्सको के साथ साथ इस आधुनिक तकनीक को उपलब्ध करने वाले सेंटर को ही चुने. आखिरकार आपकी आँख सर्वोत्तम इलाज की हक़दार है.
मोतियाबिंद ऑपरेशन कब करना चाहिए ?
मोतियाबिंद क के अक्सर मरीज़ो को देखा जाता है की वह मोतियाबिंद कके पकने का इंतज़ार करते हैं अगर मोतियाबिंद ज़्यादा पक जाता है तो कला मोतियाबिंद होने का खतरा बढ़ जाता है जिससे आपकी रौशनी हमेशा के लिए जा सकती है इसीलिए समय रहते ऑपरेशन करलेना चाहिए. मोतियाबिंद के ऑपरेशन के लिए किसी भी मौसम का या समय का इंतज़ार नहीं करने की ज़रुरत है ये बारह महीनो में कभी भी कराया जासकता है.
मोतियाबिंद सर्जरी के बाद की सावधानिया:
-डॉक्टर द्वारा बताये गए काले चश्मे को लगा कर रखे और ऑय ड्रॉप्स को बताये गया समय पर लगातार डाले – ड्राइविंग न करे – नहाते समय फेस के नीचे से नहाये आँखों में पानी न जाने पाए. और अगर फिर भी आँखों में खुजली या और कोई समस्या होतो तो डॉक्टर से कंसल्ट करे.
मोतियाबिंद से बचाव
अपने खान पान पर पूरा ध्यान दें और हेल्थी चीज़े खाएं ज़्यादा तर विटामिन सी और विटामिन आई से भरपूर चीज़े ले जैसे की पालक, गोभी, शलजम साग, और अन्य पत्तेदार साग। स्मोकिंग से बचे , स्मोकिंग करने से अन्य बीमारियों के अलावा आँखों में मुक्त कण (फ्री रेडिकल्स) पैदा हो जाते हैं जो आंखजो आँखों को नुकसान पहुँचाने हैं. सर्जरी से पहले किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? सर्जरी से १२ घंटे पहले कूछ भी खाने या पीने के लिए मन होता है और अगर कोई दूसरी दवा चल रही है तो डॉक्टर आपको मन करेगा सिमित समय के लिए क्यूंकि उससे आपकी सर्जरी में ब्लीडिंग ज़्यादा होसकती है एंटीबायोटिक आँखों की दवा को आप को आँखों में डालने के लिए बोला जायेगा एक या दो दिन पहले.
मोतियाबिंद सर्जरी की कितनी कीमत होती है?
मोतियाबिंद सर्जरी की कॉस्ट देपेंद करती है इस बात पर की आप को कौनसा लेंस सूट करेगा और अपने किस प्रोसीजर और लेंस को चुनते है अपनी सर्जरी के लिए साथ ही आपकी ट्रीटमेंट हिस्ट्री भी भट महत्वपूर्ण होती है कॉस्ट का फैसल करने में पूरी जानकारी के लिए आप हमारे विशेषज्ञों से मिलकर पता करसकते हैं.
सर्जरी के दुष प्रभाव ?
आज कल कैटरेक्ट सर्जरी पूरी तरह से लेज़र चलित हो chuki है इसीलिए कोई दुष प्रभाव नहीं होता हाँ कभी कबकाभर सर्जरी के बाद मरीज़ को सर दर्द या तेज़ रौशनी में परेशानी होती है इनसे घबराना नहीं चाहिए और हमेशा कला चश्मा लगा कर रखे और अगर कोई अन्य समस्या हो तो अपने विशेषज्ञों से संपर्क करें. Centre for sight में हम मानते हैं की हर आंख को हक़ है बेहतरीन दृष्टि का इसीलिए हमारी ५० से ज्यादा अस्पतालों में आपको मिलता है व्यक्तिगत उपचार और बेहतर दृष्टि परिणाम। सेंटर फॉर साइट में सभी प्रकार के आँखों के इलाज के लिए बेहतर सुविधा मौजूद है और हमारे विशेषज्ञों की टीम पूरी तरह से मॉडर्न टेक्नोलॉजी के माहिर हैं । हमारे विशेषज्ञों कई बड़े स्नास्थान जैसे LVPEI, संकरा नेत्रालय , AIIMS , में कार्यरत रह चुके हैं और अपने सालो के अनुभवों से ankh से जुडी हर जटिल से जटिल बीमारी का समाधान देरहे हैं centre फॉर साईट में. Centre for सिघ्त में मिलेगी आपको पर्सनलाइज्ड देखभाल और उच्चतम इलाज जल्द दृष्टि सुधर हेतु. आप आंख बंद करके bharosa karsakte है सेंटर फॉर साइट के सालो के तजुर्बे और इलाज की सुविधा पर क्यों की सेंटर फॉर साइट के लिए मरीज़ की देखभाल को सर्वपरि मन जाता है. उपलब्ध सुविधाएँ: फेम्टोसेकण्ड एवं माइक्रो इंसीजन मोतियाबिंद सर्जरी . लसिक एवं नवीनतम स्माइल तकनीक (चश्मा उतारने हेतु). ग्लूकोमा का उपचार. रेटिना (आंख के परदे ) का उपचार. ओकुलोप्लास्टी एवं ऑक्युलर ऑन्कोलॉजी का उपचार. कॉर्निया ट्रांसप्लांट . भेंगापन. काम दृष्टि सहायक यन्त्र . चश्मा एवं फार्मेसी. और अन्य कई सारी आँखों से जुड़ी बीमारियों के लिए इलाज की सुविधा उपदबध है. के लिए आज ही अप्पोइंटमेंट बुक करें।
Article: मोतियाबिंद: लक्षण, कारण, प्रकार, इलाज, ऑपरेशन, कीमत व बचाव
Author: CFS Editorial Team | Apr 22 2020 | UPDATED 02:00 IST
*The views expressed here are solely those of the author in his private capacity and do not in any way represent the views of Centre for Sight